49/84 श्री पृथुकेश्वर महादेव

49/84 श्री पृथुकेश्वर महादेव

अंगराज के पूत्र वेन के अंगो के दोहन से पृथु नामक एक बालक का जन्म हुआ। पृथु महापराक्रमी ओर जगत विख्यात हुआ। पृथु के राज्य में हवन नही होते थे, वेद मंत्रो का उच्चरण भी नही होता था। सारी प्रजा हाहाकार कर रही थी। राजा ने क्रोध मे आकर त्रिलोक को जलाने की इच्छा की । इसी समय नारद मुनि वहां प्रकट हुए ओर राजा से कहा कि पृथ्वी ने अन्न का भक्षण किया है। इस कारण आप पृथ्वी का वध करें। राजा ने अग्नि अस्त्र पृथ्वी पर छोडा जिससे पृथ्वी जलने लगी। पृथ्वी गाय रूप लेकर राजा के पास आई ओर उससे क्षमा मांगी। पृथ्वी ने राजा से कहा उसे जो चाहिए वह दोहन कर प्राप्त कर ले। राजा ने गाय रूपी पृथ्वी का दोहन कर हिमालय को कडा बनाकर अन्न ओर रत्न प्राप्त किए। प्रजा खुशहाल हो गई। इधर राजा का ध्यान गोवध की ओर गया। राजा पाप से दुखी होकर अपने प्राणों को त्यागने के लिए निकल पडा। नारद मुनि ने राजा से कहा कि आप अंवतिका नगरी में अभयेश्वर महादेव के पश्चिम में स्थित शिवलिंग का दर्शन करो, आप निष्पाप हो जाएंेगे ओर ऐसा ही हुआ। राजा प्रथु के दोष मुक्त होने से लिंग का नाम प्रथुकेष्वर हुआ।

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